पुष्टिमार्ग और ब्रजयात्रा

 

         व्रज के प्राचीन स्थलो का महत्व वार्ताओ मे विशेष रहा है ।यह स्थलो  पे जाना `व्रज यात्रा ' माना जाता हैं।उद्ववजी जब गोपीयों को उपदेश देने व्रज पधारे तो गोपियों ने उनके हाथ पकड पकड़ कर उन स्थलों का साक्षात्कार कराया जहा उनकेउपास्य देव ने उनके साथ अनेक लीलाएँँ की थी।इन्हींं प्रसंगों को भविष्य में जीवंत रखने के लिए `व्रजयात्रा'का सूत्रपात किया गया। यह यात्रा आसपास स्थित सभी वनों- उपवनों से होकर गुजरती है,इसलिए इसे `वनयात्रा ' भी कहा जाता है 
 
     

  •             जब श्री महाप्रभुजी वि.संवत 1550 मे गोकुल(व्रज) मे आये तो वहाँ करील के काँटो भरी धनी झाडियाँँ थी जिन्हे काट-छाँटकर अनेक स्थलों को पुनः प्रकाशित किया और वहीं पर श्रीमद भागवत गीता का पारायण कर उसके महत्व को प्रस्थापित किया।श्री महाप्रभु जी के बाद इस क्रम को श्री विठ्ठलेशजी ने आगे बढाया।उन्होंने अनेक स्थानों पर बैठकें प्रस्थापित करवायींं,तदनन्तर तीथँ यात्राएँ व्यक्तिगत न रहकर सावँजनिक और सामुहिक हो गई।व्रजयात्रा और वनयात्रा के आदि प्रेरक श्री महाप्रभुजी और श्री गुसाईंजी ही थे।


ब्रजयात्रा का क्रम
      ब्रजयात्रा श्री महाप्रभुजी से आज्ञा प्राप्त कर प्राय:भादों सुदी 12 को विश्रामधाट से प्रारम्भ की जाती हैं।पहले दिन यात्री मथुरा नगर के अन्तर्गत दर्शनीय स्थानों की परिक्रमा व दर्शन करते है तत्पश्चात वे मथुरा से बाहर स्थित दर्शनीय स्थलों हेतु निकल पडते हैं।यात्रा के अंतिम दिन भी मथुरा के आसपास के दर्शनीय स्थलों,घाटों आदि के नाम इस प्रकार हैं- विश्रामघाट, केसरबाग, सती का बुर्ज, चर्चिका देवी, योग घाट,पिपलेश्वर, प्रयागघाट, वेणीमाधव का मंदिर, श्याम घाट,दाऊजी, मदनमोहनजी,गोकुलनाथजी का मंदिर, कनखलतीर्थ, बिन्दुकतीर्थ,सूर्य घाट, धृवक्षेत्र, धृवटीला, सप्तषिँटीला, कोटि तीर्थ,रावणटीला,बुद्बि टीला, बलिटीला, रंगभूमि, कंसटीला, रंगेश्वर महादेव, सप्तसमुद्ध कूप,शिवताल, बलभद्बकुंड,भूतेश्वर महादेव, पोतराकुण्ड,ज्ञान वाणी, जन्मभूमि, केशवदेव मंदिर, कृष्ण कूप, कुब्जा कूप,महाविधा,सरस्वती घाट,सरस्वतीकुण्ड,सरस्वती मंदिर, चामुंडा, उतरकोटि तीर्थ, गणेश तीर्थ,गोकर्णश्वर,गौतमऋषिकी समाधि, सेनापति का घाट,सरस्वतीसंगम,दश्वाश्वमेघ घाट, अम्बरीश टीला, चक्रतीर्थ, कृष्ण गंगा, कालिंजर महादेव, सोमतीर्थ, गौघाट, घण्टाकर्ण,युक्तितीथँ,कंसकिला,ब्रह्मघाट,वैकुण्ठ घाट,घारापतन,वसुदेव घाट, असिकुण्डा,वाराह क्षेत्र, द्बारकाधिशजी का मंदिर, मणिकर्णिका घाट, महाप्रभुजी की बैठक तथा विश्राम घाट।इस प्रकार यात्रा का आरम्भ और अंत दोनो मथुरा मे ही होता हैं किन्तु यात्रा का प्रथम विश्राम दूसरे दिन मधुवन मे होता हैं।मथुरा से लगभग चार मील दक्षिण-पश्रिम मे स्थित मधुवन,जो आज ' महोली 'के नाम से विख्यात है -चतुभुर्ज ठाकुर का मंदिर, श्री महाप्रभुजी की बैठक,ध्रवजी के मंदिर तथा कृष्णकुण्ड के लिए सुप्रसिद्ध है।मधुवन विश्राम के उपरान्त ब्रजयात्रा के विभिन्न महत्वपूर्ण स्थलों के दर्शन एवं परिक्रमाएँ भिन्न भिन्न  पडावों के अन्तर्गत की जाती है।
 









   
                                                                         इसे      

   



     

               .                                                                          

  

                                                                                                               

     

















     



Comments